महार कौन थे ? महार समाज का क्या था इतिहास
महार गाँव के बाहर रह कर गाँव की रक्षा करते थे,किसानो की ज़मीन ,गाँव की सीमा बताना ,व्यापारियों को एक जगह से दूसरी जगह जाते वक़्त सुरक्षा देना ,खेत से होने वाली फसल और राज्य के खजाने की रक्षा करने वाला और उसे एक जगह से दूसरे जगह सुरक्षित ले जाना यह सब काम महारो के थे। महार समाज का काम ही ऐसा था की उन को गाँव के बहार रहना पड़ता था।
महार कौन थे ? यह जानने के लिए हमे सबसे पहले इस प्रशन का उत्तर खोजना पड़ेगा की महार समाज क्या है ? अभी तक जो बाते हमे मालूम है वह यह है :-
1.महार समाज गाँव के बहार रहता था।
2.महार समाज गाँव की रक्षा का कार्य करता था यह उनका कर्तव्य ही नहीं उनकी जवाबदारी भी थी। अगर गाँव में चोरी करने वाला नहीं पकड़ा जाता तो चोरी हुए सामान की महारो को भरपाई कर के देनी होती थी।
3.चोरी करने वालो का पता लगाना , गाँव में आने जाने वालो के बारे में जानकारी रखना ,संदिग्ध लोगो को गाँव के बहार रोक के रखना ,यह महारो के काम थे।
4.खेत और गाँव की सीमा निर्धारित करते समय महारो की बात अंतिम होती थी।
5.महारो की स्वतंत्र चावडी( बस्तियां) होती थी और उस का मूल्य गाव की चावडी से बड़ा होता था.
6.जब भी व्यापारी अपना कारवां ले कर जाते थे तब महारो को उनकी रक्षा के लिए नियुक्त किया जाता था।
7. महार यह एक लड़ाकू जाती(मार्शल रेस) है यह बात ब्रिटिश लोगो ने पहचानी और महार रेजिमेंट बनाई।
8.महार पेशे से अंगरक्षक थे ,इस लिए बड़े दिल के थे (निर्भीक )थे।
9.महार गाँव,नगर ,राज्य में गुप्तचर का काम भी करते थे और कुछ भी संदिग्ध लगता तो उस की खबर नगर अध्यक्ष या गाँव के पाटिल को देते थे यही नहीं बंजारे या और कोई लोग गाँव में आते थे तो उन के बारे में पता कर के गाँव के पाटिल को बताते थे यह उनका कर्त्तव्य था।
10.लगान सही जगह ले कर जाना ,खजाना सही जगह ले कर जाना यह महारो की जिम्मेदारी थी।
11. महार समाज अस्पृश्य नहीं बनाया गया था।
पुलिस, गुप्तचर विभाग और राजस्व विभाग संबंधित कार्य करता था। महार शब्द इस के कई अर्थ निकले गए है डॉ. इरावती कर्वे ने कहा महार जहाँ रहते है वो राष्ट्र "महारष्ट्र",मृताहारी (मरे हुए जानवरों का मास खाने वाले ) इस शब्द से महार शब्द बना है, इरावतीबाईं ने यह बात बोली ,यह बात बिलकुल मानाने योग्य नहीं है है ,बुद्ध धर्म में स्वाभाविक रूप से मरे हुए जानवरों का मास खाने की मनाही नहीं है तो पुरे भारत में मरे हुए जानवरों का मास खाने वाली कई जातियाँ हुई होगी पर सब को महार नहीं बोला जाता यह जाती केवल महाराष्ट्र और आस -पास के प्रदेशो में ही महार जात पाई जाती है। यह मूल शब्द महार क्या है इस को और खोजने की जरूरत है कि स्पष्ट है।
महाआहारी (बहुत खाने वाले ) लोग महार बोले गए यह बात रोबेर्टसन ने अपनी किताब दि महार फोल्क में कही है पर यह बात भी बिलकुल मानाने योग्य नहीं है ,महार का एक जात के तौर पर किसी स्मृती,या पुराण में भी उल्लेख नहीं मिलता अछूत कह कर भी इस जात का किसी पुराण में भी उल्लेख नहीं मिलता,मनु स्मृती में निषाद, बेण, आयोमेद, आंध्र, चुंचू, धिग्वन इन जातियों के बारे में लिखा गया है की यह जातियाँ गाँव के बहार रहती थी पर चांडाल को छोड़ कर उन जातियों को भी अछूत नहीं बोला गया है तैत्तिरिय उपनिषद् के अनुसार और विष्णु स्मृति के अनुसार केवल चांडाल यही जात अछूत है इस लिए जन्म से ही अछूत मानाने वाली बात भारत में कब आई इस बात के कोई प्रमान नहीं है
तो सवाल यह उठता है कि महार जात कहां से आई ?महार क्या यह नागवंशी वा सोमवंशी है क्या ?
इसके लिए हम महार समाज के प्रमुख सरनेम पे एक नज़र डालते है ,महारो में कुछ प्रमुख सरनेम आडसुले अहिरे, अवचट, भेडे, भिलंग, भिंगार, भोसले,कांबले , गायकवाड, पवार, कदम, शेल के, शिंदे इन प्रमुख सरनेम पे एक नज़र से यह बात साफ़ हो जाती की यह सरनेम (ओबीसीं) में भी पाये जाते है इस से यह बात साफ़ हो जाती है यह लोग भी कभी इसी समज का हिस्सा थे और जैसे जैसे व्यवसाय अलग होता गया वैसे वैसे इस समाज में से अलग जातिया बनती गयी और फिर जातिया जनम पर आधारित होती गयी और जातिया जातियों और धर्म में विभाजित होता गया यह समज जिन देवतो को मुख्यतया मनाता आया था वह थे (शिव, विष्णू, विठ्ठल, महलक्ष्मी इत्यादी) इस समाज के कोई अलग से देवता नहीं है पर इस में कोई आशचर्य नहीं है अस्पृश्य काल के दौरान मंदिरो में प्रवेश न मिलने पर अपने धार्मिक कल्पना अनुसार लोकदेवता विकसित होते है यह हम प्रतिष्ठा मिले भगवानो के बारे में भी देख सकते है।
इस लिए हम शुरू में बताये महार समाज के काम को एक बार फ़िर देखते है :-
महार ग्रामरक्षक थे और चोर ,डाकू और आक्रामण करने वाले को भागना उनके काम थे ,गाँव के बार रहना उनके काम की मज़बूरी थी जिस से वो गाँव की रक्षा ठीक से कार सके और वो गाँव के अंदर नहीं रह सकते थे इस लिए उनकी बस्तिया गाँव के बहार होती थी और उनकी बस्तियों का महत्व गाँव की बस्तियों से ज्यादा था ,उन्हें भुमिपुत्र मना जाता था और उनके द्वारा ही गाँव और खेतो की सीमा निर्धारित और रक्षित की जाती थी।
पहले के समय में प्रादेशिक व्यापर बहुत बड़े स्तर पर होता था ,दूसरे देश या प्रदेश से जाते समय इन को व्यापारी अपने साथ अपनी रक्षा के लिए ले जाते थे ,महारो की ख्याति हमेशा ईमानदार ,प्रामाणिक और लठैत के तौर पर रही है
इस दोनों कथनो से यह बात बिलकुल साफ़ हो जाती है की महार शब्द की उत्पत्ति महारक्षक (या फिर महारक्खित-महारक्ख ) शब्द से हुई है इस बात को सत्य साबित करने के लिए दोनों कारण है ,महार ये ज़ात महाराष्ट्र और इस के आस -पास के प्रदेशो में ही पायी जाती है ,इस ज़मीन पर सातवाहन साम्राज्य ने 450वर्ष तक राज्य किया सातवाहनो ने अपने साम्राज्य के अंत तक मराठी को अपनी राज्य भाषा बनाये रखा इस लिए जातियों के नाम पर मराठी प्रभाव स्वाभाविक है सातवाहनो के समय में रक्षा का कार्य करने वालो को रक्ख कहा जाता था और उनके प्रमुख महारक्ख आगे चल कर चल कर मराठा नाम से एक स्वतंत्र जात बानी यह बात इस कथन पर ठीक बैठती है , और पद के अलट-पलट में सब ने महारक्ख यह नाम अपना लिया और समय के साथ महारक्ख में से क्ख गायब हो गया और महार बचा
महार समाज जिन सामाजिक कर्तव्यों का पालन करता था इस कारण महारक्ख यह उनका पद नाम होता था उस समय ,राजकीय अस्थिरता,राजकीय कार्यकलाप और कभी पूरी आराजकता के समय महारो को काम बहुत ज्यादा महत्व का हो जाता था उन के बिना ग्राम आधारित समाज व्यवस्था जीवित नहीं रह सकती थी।
महारो का ज़ात की तरह उदय
महारो का ज़ात की तरह उदय कब हुआ इस के लिखित या भौतिक प्रमाण मौजूद नहीं है पर समाज का इतिहास ऐसा बताता है की जब नगर व्यवस्था आस्तिव में आती है तब तब समाज अपने में से लढवैय्या ( लड़ने वाला या लठैत ) को अपने में से नगर सेठ की रक्षा के लिए नियुक्त करता है युद्ध में लड़ने वाले सैनिक और नगर रक्षक में फ़र्क़ है सैनिक को युद्ध में दुश्मन से लड़ने का काम होता है ,पर ग्राम रक्षक को अपना काम दिन रात करना पड़ता है गाँव और शहर में दुश्मन से रक्षा करने के लिए तटबंदी या गाँव और शहर की सीमा सुरक्षित करने के लिए दीवार बनाने की प्रथा सिंधू सभ्यता से है इन दीवारो के दरवाज़े बंद भी कर दिए जाये तब की गाँव और शहर की रक्षा के यहा पहरा देने की प्रथा थी इस का कारण थी तब की अर्थव्यवस्था जो मूलतः कृषि प्रधान थी जब भी शत्रू गाँव या शहर पर हमला करता तो फसलो को जलाते हुए गाँव या शहर में प्रवेश करता यह प्रथा भारतीय समाज में 18वी सदी तक थी और उन्हें गाँव या शहर के बहार रोकने का प्रयत्न किया जाता था यह तर्कसंगत कथन है शुरवात में पथ के प्रमुख को महारक्षक (महारक्ख)का पद मिला होगा परंतु महारट्ठी (रट्ठांचे प्रमुख) जैसे एक ज़ात में परिवर्तित हुए तब महारक्षक यह भी एक ज़ात बानी और यही जात अब महार के नाम से जानी जाती है।
1.तब के समय में गाँव के चारो और तटबंदी होती थी और रात के समय में मुख्य दरवाजा बंद कर दिया जाता था ,और सत्ता किसी की भी हो गाँव सुरक्षित नहीं हुआ करते थे ,गाँव में लूटपाट करना ,गाँव को जलना यह हमलावरों का प्रमुख काम था गाँव में रह कर गाँव की रक्षा करना ऐसी प्रथा क्रमशः कम होती चली गयी और महार खुद की जान और अपने परिवार की जान को खतरे में रख कर गाँव के बहार रहने लगे और गाँव की हिफाजत करने लगे हमेशा उनकी ही जीत हो यह संभव नहीं है ,तब उन को अपने प्राणो का बलिदान देना पड़ता था गांवों में जो भडखंबे मिलते है वो ऐसे मारे गए लोगो के स्मारक है।
2. महार समय प्राचीन काल में तो पता नहीं पर बाद के समय में गरीब ही रहा है गाँव के बहार रहने के कारण संपत्ति जमा करने का कोई उपयोग नहीं था क्यों की गाँव के बहार रहने के कारण लुटेरो और हमलावरों का पहला हमला उन पर ही होता था। वे जिस गाँव की रक्षा करते थे उसी गाँव को स्वतः लुटाने की घटना महारो के इतिहास में कभी दिखाई नहीं पड़ती।
3.जमीन के ,सीमाओं के विवाद, महारो की गवाही से ही निबटाए जाते थे ,उनकी गवाही का बड़ा महत्व था ( आगे पेशवा काल में भी देखे ) तो महारो ने कभी कोई गलत साबुत दिया ऐसा कभी नहीं है।
4.महारो पर गाँव से जमा सारा लगान मुख्य ठाणे पर जमा करने की भी जिमेदारी थी पर कभी यह साक्ष्य नहीं मिलते महारो ने इस गायब किया है
5.महार समाज पर अस्पृश्यता लादी गयी ,पर इस समाज जिस के खुद के लठैत इस ने कभी अपने गाँव के विरूद्ध हथियार नहीं उठाया।
क्यों और कैसे महारो की अवनति हुई ?
महारो की अवनति कैसे हुई इस पर इत्तिहास मौन है पर हम इस पर कुछ तर्क के माध्यम से प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे ;-
महार हमेसा से अस्पृश्य माने गए इस बात का कोई प्रमाण नहीं है
7वि सदी तक इस बात के कोई प्रमाण नहीं है,शायद महार धीरे-धीरे सामाजिक पायदान में नीचे खिसकते गएऔर और जैसे जैसे पुराणो के काल से चली आ रही समुद्रपार न जाने की प्रथा टूटी और आंतर्राष्ट्ीय व्यापार शुरू होने के कारण गाँव आधारित अर्थव्यवस्था खत्म होती चली गयी और ऐसे समय व्यापारी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को झटका लगता है और उत्पादन सिमित करना पड़ता है और व्यापारियों का एक जगह से दूसरे जगह जाना भी काम हो जाता है ऐसे समय जब महारो का काम व्यापारियों के काफिलों को सुरक्षा दे कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले कर जाना था तो उनका यह काम कम होता गया
12-13 सदी में महारष्ट्र में बलुतेदारी प्रथा शुरू हो गयी और इस प्रथा का सबसे बड़ा झटका महारो को लगा क्यों की उनकी सेवा अदृश्य सेवा थी वे ग्रामरक्षक का काम करते थे व्यापार में उछाल के समय ग्रामरक्षक की सेवा की जितनी जरुरत महसूस होती है पर पतन के समय ये सेवा उतनी ही बे - काम लगने लगती है यह हुआ महारो के साथ और महारो को खेती से होने वाले उत्पादन का सबसे काम भाग दिया जाने लगा और महारो की स्थिति ज़मीन पर पहुंच गयी पर अलुतेदार/बलुतेदार इन के स्थिति महारो की तुलना में कुछ ठीक रही
मरता क्या नहीं करता महारो से अपने जीवन यापन के लिए नए कार्य खोजना शुरू क्यों परन्तु तब तक जाति और आनुवंशिकता काम की परंपरा चल रही थी और समाज में काम मिलना मुश्किल होता जा रहा था तो महारो ने गाँव में जो मिले वो काम करना शुरू कर दिया जैसे -ग्राम रक्षा के साथ रास्ते साफ़ करना ,मरे हुए जानवरों का निपटान,मयत तैयार करना ,आदि वो काम जो कोई और नहीं कर सकता था वो महारो ने करना शुरू कर दिया
इस कारण महारो के पास ग्राम रक्षक और सरकारी काम के साथ खेती,रास्ते साफ़ करना ,गाय की मृत्य हो जाये तो उसको ठिकाने लगाने ,कुआ साफ करने जैसे काम महारो ने करना शुरू कर दिए।जब खाना कम पड़ा तब मृत पशु को खाना उनके भाग्य में आया होगा
इस्लामी हमलावरों ने जब हमला किया तब उन्होंने बची हुई ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी तबाह कर दिया और ऐसे समय में महारो को काम मिलना मुस्किल हुआ तब उन्होंने म्रुताहार शुरू किया इस के लिए तब की तात्कालिक परिस्थिति जिम्मेदार थी
जब सरे समाज गरीबी की खाई में जाने लगते है तब समाज तब बहुत अधिक कंजूस हो जाता है और न्याय के साथ आनाज का बंटवारा नही करता यह एक सच्चाई है
इस समय धर्म एक सर्वाच्च संस्था के रूप में उभर रहा था पैठण, काशी सभी जगह ब्राह्मण सभा ने पूरी तरह अपरहण कर के स्वार्थ आधारित धर्म प्रथा की नीव रखी,जिस धर्म प्रथा का मूल धर्म में कोई जगह नहीं थी वह लादनी शुरू की ,ब्राह्मण का नाम ही धरम है यह प्रथा भी इस काल में ही शुरू हुई इस समय पूरी राजसत्ता मुस्लिम शासकों की नौकर बन गई थी क्या सरदार ,क्या पाटिल ,सरंजामे,देशमुख सब में जब अपने स्वार्थ को प्राप्तः करने की होड़ लग गई तो ब्राह्मण भी क्यों पीछे रहता? इस समय समाज को कुछ एक दूसरे से लेना -देना नहीं रहा ,जहांगीर ,आदिलशाही या निज़ामशाही इन को दुनिया से कोई मतलब नहीं था उनका पराक्रम अपने लोगो को लुटाने में सहभागी बना पर इस बात के लिए उन्हें अकेले दोष देते नहीं आता
13वी 14वी सदी में महारो को अस्पृश्य मना गया यह मुझे प्राप्त साक्ष्य से लगता है चोखा मेला को जब विट्ठल मंदिर में प्रवेश से रोक गया तब इस के पीछे का कारण आडमुठ्या ब्राह्मण कारण था ,संत नामदेव और संत द्न्यानेश्वर इनको कभीअस्पृश्य नही मना गया। सन1475 की एक घटना जिस का उलेख आता है बहमनी सुल्तान मुहम्मद शाह (दुसरा) इस ने दामाजीपंत, पाटील, कुलकर्णी, देशमुख, देशपांडे वतनदार और 12बलुतेदार के सामने विठ्या महार ब्राह्मण दामाजी के काम आया तो उस लिख के दिया इस सन्देश में कही नहीं लिखा है मृत्य प्राणी पर पहला हक़ महार का और और उस की खाल पर मतग समाज का हक़ होगा पर इन संदेशो में भी कही नहीं लिखा है महार अस्पृश्य है
महारो का समय के साथ आनुवंशिक काम छुट गया और और वह सेवा कार्य में लग गए ब्राह्मणी धर्म ने शायद इस वक़्त महार समज को अस्प्रुश्य ठहराया और उनका सामाजिक और धार्मिक दर्जा नस्ट कर दिया
महारो ने इस अन्याय क्यों नहीं किया
महारो का जब सामाजिक और धार्मिक दर्जा नस्ट कर दिया तब महार समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से इस स्तिथि में नहीं था की विरोध कर सके
संजय सोनवणी जी ने लेख मराठी भाषा में लिखा था
महार एक लाड़कू जाति( मार्शल रेस) है यह ब्रिटिशो ने लिखा है
महारो का इतिहास आगे
महार रेजिमेंट और भिमा कोरेगाव की लडाई
भिमा कोरेगाव की लडाई सन जनवरी 1918 एक इसवी मे पुना स्थित कोरेगाव मे भिमा नदी के पास हुई। 1 जनवरी 1818 को भीमा नदी के किनारे कोरेगाव, उतरी पूर्वी पुणे में लड़ी गई थी। यह लड़ाई अंग्रेजो और पेशवा के बिच लड़ी गई थी। अंग्रेजो के तरफ 500 लडाके जिसमे 450 महार थे और पेशवा बाजीराव- द्वितीय के 28000 सैनिक थे। मात्र 500 महार सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली फौज को हरा दिया। सैनिको को उनकी वीरता और साहस के लिए सम्मानित किया गया।
ब्रिटिश रेजिडेंट की अधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार इसे नायकत्व वाला कर्त्य कहा गया और सैनिको के अनुशासित और समर्पित साहस और स्थिरता की तारीफ की गई। यह युद्ध बहुत ही महत्त्व का था। प्रथम अंग्रेजो की छोटी सी टुकड़ी ने पेशवा को हरा दिया जिसने पेशवा साम्राज्य का सफाया करने में मदद की। दूसरा अछूत महारो को अपनी वीरता दिखा जाती बंधन को तोड़ने का मौका
महार और भारतीय सविधान
24 जनवरी 1950 एक महार डॉ॰ भीमराव रामजी आंबेडकर ने भारत के सविधान भारत की संविधान सभा सौपा उन्होंने भारत का सविधान लिखने में एक अहम योगदान दिया
दीक्षाभूमि और महार
महार और बौद्ध धर्म
दीक्षाभूमी यह भारत में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है। नागपुर में स्थित इस स्थान पर डॉ। भीमराव रामजी आंबेडकर ने अक्टूबर 1956 से 14 को अपने लगभग 380, 000 अनुयायीयों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। इस में धम्म दीक्षा में महार समाज ने हिन्दू धर्म छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया
महार आज महारष्ट्र की कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत भाग ह
ै बलुतेदार प्रथा
बलुतेदार प्रथा महारष्ट्र राज्य में प्रचलित एक परम्परा थी यह एक जाति आधारित परंपरा थी इस में जो लोग कृषि नहीं करते थे वो बलुतेदार ( कारू) बोले जाते थे और अलुतेदार (नारू) उन के ग्राम के सेवक थे इन लोगो ने अपने काम बाट रखे थे इस कारण महार समाज को नए काम ढूढने में मुश्किल हुई और उन्हें जो काम मिले वो उन्हें करना पड़ा