<no title>महिलाओं ने मनुस्मृति जलाकर मनाया मनुस्मृति दहन दिवस

महिलाओं ने मनुस्मृति जलाकर मनाया मनुस्मृति दहन दिवस  


बैतूल की आवाज
बैतूल। सदर स्थित पंचशील बौद्ध विहार महिला शाखा ने बुधवार मनुस्मृति दहन दिवस मनाया। इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी रेखा चंदेलकर ने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज ही के दिन 1927 में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने मानव के मध्य भेदभाव की दीवार खड़ी करने वाली और देश के बहुजन समाज दलित, पिछड़ा वर्ग तथा महिलाओं की गुलामी को धार्मिक मान्यता प्रदान करने वाली पुस्तक मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाकर भेदभावपूर्ण व्यवस्थाओं के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाया था। तब से लेकर आज तक बहुजन समाज के लोगों द्वारा प्रति वर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति जलाकर मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है और भेदभावपूर्ण तथा शोषणकारी व्यवस्थाओं का विरोध किया जाता है। ममता कापसे ने बताया कि मनुस्मृति में अनेक कुरीतियां एवं महिला उत्पीड़न का उल्लेख था। भारतीय संविधान के पहले मनुस्मृति ही मान्यता में था। मनुस्मृति दहन बहुजनों के संघर्ष की अति महतवपूर्ण घटना है। इसे गर्व से याद किया जाना चाहिए। इस अवसर पर महिला शाखा की अपूर्वा वाघमारे, हेमलता वाघमारे, गीता नागले, मीरा बोरकर, लीलाबाई नागले, गीता सीवनकर, संगीता उबनारे, कांति डोंगरे, माला खातरकर, सया चौकीकर, शिखा झोड़, रोशनी शेषकर, चंद्रा अतुलकर, आरती शेषकर, ज्योति उबनारे करुणा मासतकर, ज्योति मासतकर, रक्षा आठनेरे, जसवंती चौकीकर आदि महिलाएं उपस्थित थी।