लंबी होती जा रही बेरोजगारों की सूची

लंबी होती जा रही बेरोजगारों की सूची


आर डी पाटिल 
शि क्षित युवा बेरोजगार नौकरी पाने के लिए बड़ी ही उम्मीद के साथ जिला रोजगार, कार्यालयों में अपना पंजीयन तो करा लेते हैं, किंतु पंजीयन की अवधि समाप्त होने के बाद लाखों की तादाद में पंजीकृत बेरोजगारों को सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है। सरकारी क्षेत्र में नौकरी के अभाव के कारण पंजीकृत युवा बेरोजगारों के पंजीयन की अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें अपने पंजीयन का नवीनीकरण कराने में जरा भी दिलचस्पी नहीं होती है। बेरोजगार युवा जानते हैं कि पंजीयन की निधर्रित अवधि में जब उन्हें कहीं से कोई इंटरव्यू का अवसर नहीं मिल पाया तो आगे नवीनीकरण के बाद नौकरी की उम्मीद करना बेमतलब है।

सरकारी क्षेत्र में नौकरी से नाउम्मीदी के कारण रोजगार कार्यालयों में बेरोजगार युवकों की संख्या लाखों में हो गई है। जिस गति से बेरोजगार युवक रोजगार कार्यालय में अपना नाम लिखवा रहे हैं, उसकी तुलना में नौकरी के अवसर बहुत ही कम संभावित हैं। अभी हाल ही में एक समाचार पत्र ने जिला रोजगार कार्यालयों की सूची में बेरोजगारों की बढ़ रही संख्या पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मध्यप्रदेश के जिला रोजगार कार्यालयों में जितने युवा बेरोजगारों ने पिछले चार वर्षों में अपने नाम दर्ज कराये हैं, उनमें से केवल दस प्रतिशत को ही रोजगार मिल पाया है। शेष 90 प्रतिशत पंजीकृत पढ़े लिखे बेरोजगारों युवक अपने भविष्य के प्रति हताश हो चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार जिन दस प्रतिशत युवा बेरोजगारों को अवसर मिला है उन्हें यह अवसर सरकारी क्षेत्र के बजाय निजी क्षेत्रों की नौकरियों में ज्यादा मिला है। 

आम चुनावों के समय राजनैतिक पार्टियां अपने घोषणापत्रों में पढ़े-लिखे युवकों को पर्याप्त नौकरियां देने के सब्जबाग तो खूब दिखाती हैं, किंतु उनकी घोषणाएं जमीनी हकीकत नहीं ले पाती हैं। प्रदेश में पिछले आम चुनाव के समय जारी भाजपा घोषणापत्र को देखा जाय तो उसमें युवाओं को नौकरी मुहैया कराने के प्रलोभन की बातें कहीं गई थी किंतु पिछले चार वर्षों में बेरोजगारों की पंजीयन और उनमें से कुछ को मिले नौकरी के अवसरों के आंकड़े देखने से तो घोर निराशा होती हैं। वायदे किए गये थे कि सरकार में आने पर यह पार्टी अगले तीन सालों में प्रदेश के 85 लाख युवकों को बेरोजगारी से मुक्ति दिलायेगी इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर जोर दिया जायगा और बेरोजगारों को नौकरी के बजाय स्वरोजगार के प्रति उन्मुख कराने का वातावरण बनाया जायगा। घोषणा में यह भी कहा गया था कि स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए स्थानीय कौशल का दोहन किया जायगा। इस तरह की घोषणाए और रोजगार की तलाश कर रहे युवकों से किए गए वायदे चुनावी घोषणापत्र में देखे जा सकते हैं। इस तरह की घोषणाओं और वायदों में से कई ऐसे वायदें हैं जिनको पूरा होने की चाहत में युवकों को अब हताशा ही हाथ लग रही है। कृषि उद्योगों, सूचना प्रौद्योगिकी, मार्केटिंग आदि के क्षेत्र में विकासखंड स्तर तक प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित करने के वायदों से युवकों में बड़ी उम्मीद बंधी थी, किंतु इनमें से अधिकांश वायदों का फायदा रोजगार के लिए प्रतीक्षारत युवकों को नहीं मिल पाया है। आकड़ों के अनुसार मौजूदा प्रदेश सरकार के चार वित्तीय वर्षों में करीब 17 लाख 14 हजार बेरोजगारों ने जिला रोजगार कार्यालयों में अपने नाम दर्ज कराये जिनमें से दस हजार से कुछ ही ज्यादा युवकों को नौकरी के अवसर मिल पाये हैं। पंजीकृत पढ़े लिखे युवाओं की इतनी बड़ी लंबित सूची रोजगार के क्षेत्र में युवकों के भविष्य के प्रति प्रश्नचिन्ह बन गई है।
पिछले चार वर्षों में जिन युवकों ने पंजीयन कराये उनमें से प्रतिवर्ष कुछ को नौकरियां मिली भी हैं, किंतु उनका प्रतिवर्ष का आंकड़ा पंजीकृत संख्या का दस प्रतिशत से ऊपर नहीं पहुँच पाया। राज्य सरकार के समक्ष भी जिला रोजगार कार्यालयों में बढ़ती जा रही पढ़े लिखे बेरोजगारों की सूची एक चुनौती बन गई है। बेरोजगारों की सूची एक चुनौती बन गई है। सरकारी क्षेत्र में नौकरियों की कम संभावनाओं के कारण अब सरकार ने रोजगार कार्यालयों में पंजीयन युवकों को रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए निजी कंपनियों की ओर ध्यान दिया है। अब रोजगार कार्यालयों में 'जाब फेयर', (रोजगार मेले) आयोजित करना शुरू कर दिया गया है। इन मेलों के मार्फत रोजगार कार्यालय में टंगी बेरोजगारों की सूची की लम्बी छोटी होने की संभावना देखी जा सकती है। आंचलिक क्षेत्रों में स्थानीय कौशल से पढ़े लिखे बेरोजगार युवकों को प्रोत्साहित करने के मामले में थोड़ा बहुत ही यदि सरकारी स्तर से प्रयास शुरू हो तो स्थानीय कौशल के जरिए रोजगार की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। इस भौतिकवादी बाजारवाद के दौर में रहन सहन में प्रतिस्पर्धा और नकल करने की दौड़ में आज के युवा की कहीं ज्यादा दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। किंतु यदि सरकारें युवाओं के साथ किये गये वायदों को अनदेखी नहीं करते हुए उन्हें स्थानीय स्तर पर उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था करवायेगी तो निश्चित ही युवकों का रूझान इस दिशा में बढ़ सकेगा। इससे रोजगार कार्यालयों की सूची में बेरोजगारों की बढ़ रही संख्या भी कम होगी और ये रोजगार कार्यालय अपने अस्तित्व पर लगे प्रश्नचिन्ह से भी मुक्त रह पायेंगे।