महिला दिवस विशेष

महिला दिवस विशेष 
बेटी को अपनी स्वेच्छा से 25 प्रतिशत संपत्ति का अधिकार देंगे सरियाम दंपत्ति त
बैतूल। पिता, भाई, पति पर वित्तीय रूप से निर्भरता सालों से महिलाओं की मुश्किलों की जड़ रही है। इसी के मद्देनजर 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 में संशोधन किया गया। इसके तहत पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हिस्सा देने की बात कही गई है। लेकिन अगर पिता ने खुद प्रॉपर्टी खरीदी है यानी पिता ने प्लॉट या घर अपने पैसे से खरीदा है तो बेटी का पक्ष कमजोर होता है। इस मामले में पिता के पास प्रॉपर्टी को अपनी इच्छा से किसी को गिफ्ट करने का अधिकार होता है। बेटी इसमें आपत्ति नहीं कर सकती है। लेकिन पिता बेटी को अपनी मर्जी से प्रॉपर्टी में हिस्सा दे ऐसा बहुत कम सुनने या देखने में आता है। इसी को देखते हुए बैतूल के आदिवासी युवा समाजसेवी राजेश सरियाम ने बच्चियों के हित में एक नई पहल की है। जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी के साथ में यह निर्णय लिया कि अपनी संपूर्ण संपत्ति का 50 प्रतिशत बेटे को, 25 प्रतिशत खुद के नाम औऱ बेटी के नाम भी 25 प्रतिशत संपत्ति दी जाएगी। इस संबंध में श्री सरियाम ने बताया शादी के उपरांत बेटिया ससुराल चली जाती हैं, अगर ससुराल ठीक मिला तो कोई बात नहीं, लेकिन ससुराल में यदि बेटी प्रताडि़त होती है और वह अपने मायके वापस आती है तो अक्सर देखने में आता है कि उससे वह अपनापन परिवार वाले नहीं रखते, जैसा शादी के पहले करते थे। ऐसे कई प्रकरण हमारे समाज में आते हैं लेकिन वह बेटी जो शादी के पहले अपने मायके वालों का पूरा ध्यान रखती है, घर का पूरा काम करती है और ससुराल में जाने के बाद भी उसे वही करना होता है जो एक बहू को करना पड़ता है। लेकिन जब उसके ऊपर कोई विपत्ति आती है  तब अधिकतर देखने में आता है कि बेटी को अपने मायके में सम्मान नही मिलता है जिसके कारण वह मानसिक रूप से प्रताडि़त होती है उसके पास आय का कोई साधन नहीं होता है, ऐसी परिस्थिति में वह अकेली अबला की तरह अपना जीवन जीती है। अपनी बेटी के सामने ऐसी स्थिति ना आए इसको लेकर सरियाम दंपत्ति श्रीमती रजनी राजेश सरियाम ने महिला दिवस पर बेटी को संपत्ति का अधिकार देने का निर्णय लिया है।  सारियाम दंपत्ति ने बताया हम एक वसीयत जारी करेंगे, जिसमें बेटे और बेटियों में संपत्ति का वितरण किया जाएगा। वसीयत में यह भी लिखा जाएगा कि बेटी को अपनी स्वेच्छा के अनुसार विवाह के उपरांत किसी भी प्रकार की समस्या पडऩे पर संपूर्ण संपत्ति का 25 प्रतिशत लेने का पूर्ण अधिकार रहेगा। साथ ही सरियाम दंपत्ति ने सभी समाज के लोगों से यह अपील की है कि बेटे और बेटियों में फर्क मत करो और जितना अधिकार हमारी संपत्ति पर बेटों का है उतना ही अधिकार हमारी बेटी का भी है। महिला दिवस को मनाकर सिर्फ महिला दिवस के नाम पर सीमित ना रखें बल्कि समाज के अंदर महिलाओं को यदि सम्मान देना है तो समानता का दर्जा देकर और उन्हें उनके अधिकारों का दर्जा देकर सम्मानित करें। तभी महिला दिवस का कुछ अर्थ निकलेगा। यदि हमने महिलाओं और बच्चियों के लिए कुछ नहीं किया तो इस महिला दिवस का कोई मतलब नहीं रहेगा।